Help is there
समाज में
मदद उपलबध है
पर मिलेगी नहीं
कया में इस नाटक को एकांगी जैसे लिख दूँ। हालत तो पूरी दुनिआ के चित्रण करने हैं पर अैसा करता हूँ पात्र भारत के किसी गांव के चित्रण करता हूँ। कनाडा के पात्र चुन लीए तो ताश खेलने के चार पात्र एक साथ कहाँ मिलेंगे। अगर मिल भी गए प्रति घण्टा वगार न मांगने लगें -लाफ़ आउट लाऊड हिन्दी में बोले तो ज़ोर से हसिए।
गांव का नाम घूमिआरा रख देता हूँ, मेरे गांव से मिलता जुलता हो जाएगा। हाँ तो गांव घुमिआरा के पीपल के नीचे ताऊ उमेश , राजेंद्र , चन्दन और शंकर ताश पत्ती खेल रहे हैं और कुछ लोग उधर बैठे हुए हैं। पास कुछ लोग बिठा देता हूँ कोई पात्र और चाहिए होगा तो खाली नामकरण करना होगा। कनाडा थोड़े है जहाँ आस पास कोई हैय ही नहीं ,सभ घण्टे लगाने में मस्त हैं।
ताऊ उमेश ने ताश का पत्ता फेंकते हुए बात शुरू की। यकीन नहीं होता हमारे बचपन से अब तक समाज का तना बाना कितना बदल गया है। पहले राजनीती सिर्फ शहरों तक ही सीमित होती थी गांव के लोग आपस में एक साथ खड़े होते थे।
उमेश जी बात आप सही कहते हो राजेंदर ने हाँ मिलाते हुए शुरू कीया - चुनाव के आस पास कुछ चर्चा जरूर होती थी पर बाकी चार साल हम लोग एक दूसरे के साथ खड़े रहते थे। फ़ोन आते ही राजनीती गांव में घुस गई , पहले घर में एक फ़ोन था ,फिर सभ के हाथ आ जाने से राजनीती घरों में घुस आई।
ताऊ उमेश ने विषय को आगे वधते हुए कहा अब तो बात जहाँ तक जा पहुँची है , अगर घर में छे जन है। पांच मिल कर छठे को पागल साबत कर देते हैं। और यह छठा इनसान बहुत बुद्धिमान होता है पर सरकार की नीतिओं के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला होता है।
चन्दन और शंकर एक साथ बोले इसी लिए तो निशाने पर उसको चुनते हैं। शंकर ने फ़िल्मी अन्दाज़ में dialogue छोड़ते हुए बोला बाकी पांच लोग तो जा फिर डरा लीए जाते हैं , जा फिर खरीद लीए जाते हैं।
ताऊ उमेश ने वयंग कसते हुए कहा हाँ वोह राज करने की लालसा रखने वाले हर वक्त "mental illness " के sticker साथ लेकर चलते हैं जिसने भी मानवता के हक्क की बात की चिपका दीया उसके माथे पर। बहुमत का सबसे भयानक चिहरा तो यही है समझदार को पागल बोल कर हसपताल और पागल को वोट देकर powerful कुरसी। बस पैसा हो तो पागल समझदार और समझदार पागल होते जयादा समय नहीं लगता।
चन्दन ने पास वाले गांव के चिन्तामणी की उदाहरण देते हुए चिन्ता परगट की देखो उसका रोज़गार छीन जाने की वजह से उदास था। अैसा चकर चलाया ज़ालिमों ने depression का नाम देकर एक वार हसपताल ले गए फिर न जाने खून में क्या उतार दीया वह पहले जैसा सवास्थ कभी हासल नहीं कर पाया।
रांजेद्र ने चिन्ता जताते हुए कहा - अपने समाज और सरकारी ढांचे में मदद उपलबध तो है पर कागज़ों में तो है मिलती कभी नहीं। अब जिस का सिहत सुधार करना हो उसके माथे पर "mentally ill " लिख के कौन से सवास्थ सुधार का रासता बनाया जा रहा है। मुझे तो लगता है अैसी मदद की सलाह देने वाले के माथे पर "mentally ill " लिखा जाना चाहिए। क्योंकि वह चतुर प्राणी जानता है Mental illness का sticker माथे पर चिपकाने के बाद उस इनसान के मनोबल को क्षति ( नुक़सान, हानी) पहुंचेंगी।
उमेश , राजेंद्र और शंकर ने इस बात की पुष्टि की के यह ठीक इसी मंतव से कीया जाता है।
ताऊ उमेश ने बहुत गहरी बात कह डाली। सभ mental illness एलाने गए लोगों का data इक्क्ठा करो तो पता चलेगा यह सभ के सभ human rights की बात करने वाले लोग हैं। और यह रुझान भारत में बाहरले मुल्कों से आया है। क्योंकि वह देश भारत की इस मज़बूत परवारिक Social Structure से डरते हैं और इसे तोड़ने का यतन अंगरेज़ राज के समय से ही करते आए हैं।
शंकर ने पष्टि करने के लीए ज़िकर कीया " सुना हैं कनाडा में भाँग को legal कर दीया गया"
चन्दन ने पुष्टि करने के लीए हाँ में सिर हिलाते हुए कहा " हां शंकर भाई Mentally सिहतमन्द लोग मानते हैं भांग मानसिक सिहत के लीए बहुत अच्छी होती है। बहुत लाभ हैं मानसिक सिहत के लीए भांग के यह उनका मानना है।
ताऊ उमेश sarcasm में बोला वोट वटोरने के लीए कुछ भी बोलते हैं। कल को कतिलों को पकड़ने में असमर्थ रहे तो कत्ल को भी legal क्र देंगे कया ? कनाडा की सरकारें नशे, human trafficking, Crime को कण्ट्रोल करने में असफल रही है और गुस्सा भारत पर निकाला जा रहा है। इधर हमारे देश के नेता भी अपने लोगों को employment दे नहीं पाते ,वोह आधे तो border cross करते करते freeze होकर मर जाते हैं। कुछ drug dealers और criminals के जाल में फस जाते हैं . सरगना किसी और देश से होता हैं नाम हमारे देश का बदनाम होता है।
शंकर देश भगती के अन्दाज़ में बोल रहा था - अगर समस्याएं उन देशों के है तो कया भारत जाकर ठीक करेगा। उनकी धरती पर उनके आपने कनून काम क्यों नहीं करते। पता होना चाहिए उनको कितने होनहार लोग PRI के चकर में बरबाद होते हैं। यह बात अलग है मैं अपने देश की सरकार के हर काम से खुश तो नहीं पर जो समस्याएं उनकी हैं यह उनकी ज़िम्मेवारी है ।
चन्दन ने चिन्ता ज़ाहिर करते रहा पूरी दुनीआ का हाल एक ही जैसा है , जिसकी जेब में पैसा है वस उसी को ठीक मानसिक सिहत वाला माना जाता है ,बाकी साड़ी दुनीआ तो मानसिक बीमार ही मानी जाएगी। कहावत है जिसकी लाठी उसकी भैंस।